दुर्ग में ‘पुष्पा’ का आतंक: वन विभाग की लापरवाही से पर्यावरण को भारी नुकसान

दुर्ग। फ़िल्म ‘पुष्पा’ का मशहूर डायलॉग “पुष्पा झुकेगा नहीं साला” तो आपने सुना होगा, लेकिन दुर्ग जिले में हकीकत का ‘पुष्पा’ कानून और प्रशासन को खुली चुनौती देता नजर आ रहा है। जिले के उतई क्षेत्र में प्रतिबंधित अर्जुन (कहुआ) वृक्षों की अवैध कटाई और तस्करी का खेल वर्षों से जारी है।




डूमरडीह, गाढ़ाडीह, छाटा, गनियारी और छावनी चौक जैसे इलाकों में संचालित आरा मिलें इस अवैध धंधे का केंद्र बनी हुई हैं। हरे-भरे वृक्षों की कटाई कर इन्हें लकड़ी के गोलों में तब्दील किया जाता है। शिकायतें मिलने के बावजूद वन विभाग महज औपचारिक जांच कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेता है।




टीपी बना ढाल, अधिकारी बने मूकदर्शक
वन विभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचने पर ट्रांजिट परमिट (टीपी) के दस्तावेज देखकर ही संतुष्ट हो जाते हैं। वे कटे हुए वृक्षों की गीली लकड़ी और अन्य जिलों या राज्यों से आई सूखी लकड़ी के अंतर की जांच भी नहीं करते। स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह सब वन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से हो रहा है।
सुबह-शाम तस्करी के वाहन सक्रिय
प्रतिबंधित लकड़ियों से लदे वाहन (407 गाड़ियां) सुबह 4 बजे से 9 बजे तक और शाम के अंधेरे में इन आरा मिलों तक पहुंचते हैं। लेकिन न तो वन विभाग और न ही राजस्व विभाग के अधिकारी इन पर कोई कार्रवाई करते हैं।
मोटी रकम के बदले मिली सुरक्षा?
स्थानीय लोगों का दावा है कि यह ‘पुष्पा’ अधिकारियों को मोटी रकम देकर अपने अवैध धंधे को सुरक्षित चला रहा है। पाटन वन परिक्षेत्र में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई अब आम बात हो चुकी है। पर्यावरण को हो रहे भारी नुकसान के साथ ही शासन को रोजाना लाखों रुपये के राजस्व का नुकसान भी हो रहा है।
क्या जागेगा वन विभाग?
प्रश्न यह उठता है कि आखिर कब वन विभाग इस अवैध गतिविधि पर कार्रवाई करेगा? क्या पर्यावरण को बर्बाद करने वाले इस ‘पुष्पा’ पर लगाम लगेगी, या वन विभाग और राजस्व विभाग की यह चुप्पी यूं ही जारी रहेगी?