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मुस्लिम युवक संग हिंदू लड़की के लिव-इन में रहने पर कोर्ट का बड़ा फैसला: कहा- संविधान देता है साथ रहने का अधिकार

बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को एक मुस्लिम युवक के साथ रिश्ते में रहने वाली हिंदू महिला को अपनी किस्मत खुद चुनने की अनुमति दी। वहीं, उसके माता-पिता ने दावा किया था कि उसे उस व्यक्ति के साथ रहने के लिए मजबूर किया गया था। इसके बाद पुलिस ने लड़की को आश्रय गृह में भेज दिया।

बार एंड बेंच के अनुसार, जस्टिस भारती डांगरे और मंजूषा देशपांडे की बेंच ने लड़की की कस्टडी उसके साथी को देने से भी इनकार कर दिया। हालांकि, संकेत दिया कि वह उसे अपनी इच्छा के अनुसार काम करने की अनुमति देते हुए आदेश पारित करेंगी।

कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा, ”हम उसे आजादी दे रहे हैं…उसे वह करने दीजिए जो वह करना चाहती है। उसका मानना ​​है कि यह उसका जीवन है। हम केवल उसे शुभकामनाएं दे सकते हैं।” लड़की के माता-पिता के वकील ने तर्क दिया कि वह भावनात्मक रूप से बहक गई थी और अनुचित प्रभाव में काम कर रही थी।

कोर्ट ने कहा कि हमने उसे माता-पिता के पास जाने के लिए कहा था, लेकिन वह तैयार नहीं है। अगर वह अपनी भलाई के बारे में सचेत थी, तो कोई समस्या नहीं थी। हमने सुझाव दिया था कि वह एक और साल अपने माता-पिता के साथ रहे।

लड़की को उसके माता-पिता और बजरंग दल के सदस्यों सहित अन्य लोगों की शिकायतों के बाद आश्रय गृह में रखा गया था। इन शिकायतों के जवाब में, पुलिस ने हस्तक्षेप किया और कथित तौर पर उसे चेंबूर में सरकारी महिला छात्रावास में ले जाया गया।

इसके बाद, शख्स ने हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें तर्क दिया गया कि यह कार्रवाई महिला द्वारा बार-बार यह घोषणा करने के बावजूद की गई कि वह स्वेच्छा से उसके साथ सहमति से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही है। याचिका में इस बात पर जोर दिया गया कि उसके साथ रहने का लड़की का फैसला बिना किसी दबाव के मुक्त था।

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