जब गाँव थिरका अपने गुरुओं के लिए: डीजे, गुलाल और ढोल के साथ दी गई विदाई

बिलासपुर। आमतौर पर सेवानिवृत्ति के मौके पर सादगी से आयोजित विदाई समारोहों की एक पारंपरिक छवि होती है, लेकिन बुधवार को रतनपुर के करैहापारा और बोधीबंद गांव में एक अलग ही दृश्य देखने को मिला। मांदर की थाप, डीजे की धुन और गुलाल की बरसात के बीच सैकड़ों लोग एक शोभायात्रा की तरह जश्न मना रहे थे। लेकिन यह किसी धार्मिक उत्सव या सांस्कृतिक जुलूस का हिस्सा नहीं था, बल्कि यह आयोजन था – प्राथमिक शिक्षक मीरा शर्मा और हेडमास्टर शारदा राजपूत के सम्मान में आयोजित भव्य विदाई समारोह का।




तीन पीढ़ियों को दी शिक्षा




इस समारोह की आत्मा बनीं मीरा शर्मा की शिक्षकीय यात्रा असाधारण रही है। उनकी पहली पोस्टिंग अंग्रेजों के जमाने में स्थापित करैहापारा के बालक प्राथमिक शाला में हुई थी। तब से अब तक, कुछ वर्षों की अस्थायी तबादला अवधि को छोड़कर, उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन इसी स्कूल को समर्पित कर दिया।
उनकी विशेषता यह रही कि उन्होंने एक ही परिवार की तीन पीढ़ियों को पढ़ाया। आज जिनके दादा-दादी कभी उनके विद्यार्थी रहे थे, उनके पोते-पोतियाँ भी उन्हीं की कक्षा में शिक्षा ले रहे थे।
विदाई बना यादगार उत्सव
मीरा शर्मा और शारदा राजपूत के सेवानिवृत्त होने की खबर सुनते ही गांव के लोग, उनके पूर्व छात्र और साथी शिक्षक एकत्र हुए और एक ऐसा आयोजन किया जो शायद वर्षों तक याद रखा जाएगा।
भजन मंडली, डीजे की धुन, फूल-मालाओं की वर्षा, और गुलाल उड़ाते थिरकते लोग – यह सब दर्शाता है कि समाज में शिक्षकों के प्रति कितना गहरा सम्मान और स्नेह है।
भावुक पल और आभार
समारोह में शामिल हुए कई पूर्व छात्र, जो अब सरकारी अफसर, शिक्षक, व्यापारी और किसान हैं, भावुक होकर अपनी-अपनी यादें साझा करते दिखे।
मीरा शर्मा ने कहा,
“मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी विदाई इतनी भव्य होगी। मेरे लिए यह नहीं सिर्फ सम्मान है, बल्कि मेरे जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है।”
समाज में शिक्षक का स्थान
यह आयोजन सिर्फ दो शिक्षकों को दी गई विदाई नहीं थी, बल्कि गुरु के प्रति सम्मान की मिसाल थी। यह दर्शाता है कि आज भी गांवों में शिक्षक को ‘गुरु’ का स्थान दिया जाता है — एक मार्गदर्शक, एक निर्माता और एक प्रेरक शक्ति के रूप में।