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दुर्ग

महापौर चुनाव: पार्टी के विधायकों का विरोध, जनता की राय अनिश्चित

दुर्ग। नगर निगम की नई परिषद के चुनाव के लिए अब गिने चुने महीने का समय ही शेष बचा है लेकिन नगरीय निकायों में महापौर या अध्यक्ष का चुनाव जनता करेगा या फिर पार्षद मिलकर करेंगे इस फैसले पर संशय की स्थिति बनी हुई है। सूत्रों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी के ही विधायक महापौर का सीधे चुनाव का विरोध कर रहे है। इसी कारण या मामला अभी तक निर्णय के लिये केबिनेट में नही रखा जा सका है।

यहां गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के ुुबाद से नगरीय निकायों में महापौर व अध्यक्ष का चुनाव जनता के द्वारा किया गया है। भाजपा केपंद्रह साल के शासनकाल तक महापौर और अध्यक्ष का चुनाव जनता करती रही है। लेकिन वर्ष 2018 में जब राज्य में कांग्रेस की सरकार सत्तासीन हुई तब उसने इस व्यवस्था को बदल दिया और पार्षदो के द्वारा ही महापौर व अध्यक्ष चुने जाने की पुरानी व्यवस्था को बहाल कर दिया। अब राज्य में भाजपा की सरकार है। भाजपा के सत्ता में आने के बाद से ही यह कयास लगाए जा रहे है कि अब महापौर व अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता करेगी और भाजपा अपनी व्यवस्था को फि र लागू करेगी।

लेकिन इस पर अभी फैसला नही हो पाया है। राजनैतिक सूत्रों का कहना है कि भाजपा के विधायक इस व्यवस्था को फिर से शुरू के पक्षधर नही है। वे पार्षदो के द्वारा चयन किए जाने वाली व्यवस्था को बने रहने देना चाहते है। इसका मुख्य कारण यह भी है कि भाजपा विधायको पर अपनी पार्टी के प्रत्याशी को जिताने का दबाव बढ जाएगा और उन्हें् अब तक के परफार्मेंंस की कसौटी की परीक्षा फि र से देनी पड़ेगी। अपने ऊपर पडऩे वाले इस बोझ से बचने विधायक महापौर व अध्यक्ष का सीधे चुनाव नही चाहते। उन्हें लगता है कि ऐसा हुआ तो उन्हें विपक्ष से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा।

वहीं दूसरी ओर पार्टी हाईकमान इस मामले पर गहनता पूर्वक विचार कर रही है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओ का मानना है कि नगरीय निकायों में महापौर और अध्यक्ष के सीधे चुनाव से ज्यादा से ज्यादा पार्टी के पार्षदो को चुनाव जीतने में सफलता मिलेगी और पार्टी की पकड़ और अधिक मजबूत होगी। राज्य मे भाजपा की सरकार है और इसका फायदा सरकार को ही मिलेगा। बताया गया है कि चिन्तन मनन के बाद इस विषय को केबिनेट में लाया जाएगा।

आरक्षण पर टिकी है निगाहें
नगरीय निकायों में महापौर और अध्यक्ष के चुनाव के लिए आरक्षण भी होना है आरक्षण पर कांग्रेस व भाजपा दोनों दलो की निगाहें टिकी हुई है। दोनो पार्टियों में महापौर और अध्यक्ष के दावेदारो की लंबी कतार है। इस परिस्थिति में क्षेत्रीय विधायकों को दावेदार खुश करने की कोशिशों में जुटे हुए है। कई लोगो ने एल्डर मैन के लिए भी सिफारिश शुरू कर दी है। नवंबर दिसंबर व जनवरी का महीना एक बार फिर चुनाव को लेकर सरगर्म होने वाला है।

विरोध का एक कारण यह भी…
महापौर और अध्यक्ष का लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव का विधायको द्वारा विरोध करने का एक कारण यह भी है कि जनता के द्वारा चुना गया महापौर या अध्यक्ष बिना किसी दबाव के काम करेगा। ऐसी स्थिति में विधायकों की नगरीय निकायों पर पकड़ ढीली हो जाएगी और उन्हें निर्वाचित महापौर या अध्यक्ष के समकक्ष रहकर उनके विचारो का सम्मान रखते हुए काम करना पड़ेगा।

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