कड़क प्रशासन से दूर होगी तीन लाख शहरियों की समस्या

दुर्ग| भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी अलका बाघमार ने महापौर चुनाव में जीत की बड़ी मिशाल पेश की है। सफर की शुरुआत शानदार है, पर दुर्ग नगर निगम का नेतृत्व कांटो भरा ताज है। काँग्रेस की अगुवाई वाली पिछली शहरी सरकार ने निगम में करप्शन का ऐसा परिपाटी खड़ा कर दिया था, जिसने निगम को खस्ताहाल बना दिया।



कर्मचारी वेतन के लिए परेशान हैं। निगम प्रशासन लाल फीताशाही में यूं उलझा रहा कि शहर विकास के मंसूबो ने दम तोड़ दिया। हर काम मे घटिया क्वालिटी, कमीशनखोरी , अधूरा निर्माण का पोल पूरे पांच साल खुलता रहा। निगम प्रशासन निरंकुश हो गया।



स्वच्छता सर्वेक्षण में स्पर्धा करने का दम्भ भरने वाला दुर्ग नगर निगम खुद कचराखाना में तब्दील हो गया। वार्ड से लेकर मुख्य सड़कों तक सफाई चौपट हो गया। शहर की जनता निराश व हताश हो गई थी।

एक ओर बुनियादी सुविधाओं का अभाव रहा तो दूसरी ओर शहर के सौंदर्यीकरण के ऐसे ऐसे कारनामे किये गए कि जनता त्राहिमाम कर उठी। ठगड़ा बांध में पता नही कहाँ 17 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए । आज पार्टी विशेष का एक ठेकेदार ठगड़ा बांध को अनैतिक कार्यो का अड्डा बना रखा है। घूमने आए शहरियो से वहां के गुंडे जैसे गार्ड लूटपाट करते हैं।
निगम के सेटिंग बाज कर्मचारी– अधिकारियों को उनकी सही जगह भेजनी होगा। अच्छे लोगो को प्रमुख पदों पर बिठाना होगा। शहर में अतिक्रमण नासूर बन गया है। सभी प्रमुख चौक चौराहे इसकी चपेट में है। आईपीएस भोजराम पटेल ने अतिक्रमण के खिलाफ जैसे कार्रवाई की थी उसे दोहराना पड़ेगा।
इंदिरा मार्केट को नए सिरे से संवारना जरूरी है। खण्डहर हो रहे निगम के काम्प्लेक्स का संधारण करना जरूरी है। इंदिरा मार्केट क्षेत्र में यातायात और अस्त व्यस्त पार्किंग को सुधारने कड़े कदम उठाने होंगे।
ताकि शहर की सूरत निखर सके। महानगर के तरह तेजी से विकसित हो रहे दुर्ग शहर को जरूर इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराने में अब तक शहरी सरकार सफल नही हुई। महाराजा चौक क्षेत्र की ओर बेतरतीब निर्माण हो रहा है। इस इलाके में एक नया शहर ही बस गया है। मगर व्यवस्था देने के नाम पर प्रशासन सिफर ही रहा।
नए बस स्टैंड निर्माण कागज से बाहर नही निकला।
सब्जी बाजार सहित शहर में गुमटियों का नए सिरे से आंबटन आवश्यक है।
गौरतलब है, दुर्ग शहर को एक कड़क प्रशासन की दरकार है, तभी लचर व्यवस्था दुरुस्त हो सकेगी। जमीन पर शिद्दत से काम कर सकने वाले शहर सरकार की जरूरत है। जो शहर की तीन लाख से अधिक आबादी की भावनाओ के साथ न्याय कर सकें।