बिना सुनवाई की गई रिकवरी को हाई कोर्ट ने बताया गलत, राज्य शासन को राशि लौटाने का निर्देश

बिलासपुर, । छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि बिना जांच और सुनवाई का अवसर दिए गए वसूली आदेश वैधानिक नहीं माने जा सकते। कोर्ट ने उद्यानिकी विभाग के सेवानिवृत्त कर्मचारी विनायक मानपुरे के वेतन से की गई करीब 7 लाख रुपये की वसूली को अवैध ठहराते हुए, आदेश को रद्द कर दिया और राज्य शासन को वसूली की गई राशि लौटाने का निर्देश दिया है।



क्या है मामला?




विनायक मानपुरे, जो कि उद्यानिकी विभाग में पदस्थ थे, के विरुद्ध सेवा काल के दौरान विभाग ने बिना किसी जांच और प्रक्रिया के करीब 7 लाख रुपये की वसूली कर ली। इसके बाद, जब वे 2020 में सेवानिवृत्त हुए, तब उनके विरुद्ध 9 लाख रुपये का अतिरिक्त ब्याज आरोपित कर दिया गया और उनकी ग्रेच्युटी व अन्य सेवानिवृत्त लाभों पर रोक लगा दी गई।
इस कार्रवाई के खिलाफ विनायक मानपुरे ने अधिवक्ता सुशोभित सिंह के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। याचिका में कहा गया कि छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1966 के नियम 16 के तहत कोई भी वसूली आदेश तब तक पारित नहीं किया जा सकता जब तक कि कर्मचारी को सुनवाई का अवसर न दिया गया हो।
कोर्ट की टिप्पणी
मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने पाया कि विभाग ने संबंधित नियमों का पालन नहीं किया, न ही किसी प्रकार की जांच की गई और न ही मानपुरे को अपनी बात रखने का मौका दिया गया।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी स्थिति में की गई वसूली न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि यह सेवक के अधिकारों का उल्लंघन भी है। इसके साथ ही, कोर्ट ने पूर्व में वसूल की गई राशि को तत्काल वापस लौटाने का आदेश दिया।
क्या कहा याचिकाकर्ता ने?
याचिकाकर्ता के अनुसार, विभागीय अफसरों ने शासन के निर्धारित दिशा-निर्देशों की पूर्णत: अवहेलना की। कोई संक्षिप्त जांच तक नहीं की गई और सीधे वेतन से बड़ी राशि की कटौती कर दी गई, जिससे न केवल आर्थिक हानि हुई, बल्कि मानसिक पीड़ा भी झेलनी पड़ी।
यह फैसला उन तमाम सरकारी कर्मचारियों के लिए एक मिसाल बन सकता है जिनके साथ बिना उचित प्रक्रिया के वसूली की जाती है। कोर्ट ने यह भी दोहराया कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना प्रत्येक विभाग की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है।